Monday, June 21, 2010

अर्थ नामक अनर्थ


पं. मनोज कुमार मिश्रा
जैसे थोड़ा सा कोढ़ सुंदर रूप को बिगाड़ देता है वैसे ही तनिक सा भी लोभ यशस्ववियो के शुद्ध यश और गुणवानो के प्रशंसनीय गुणो को नष्ट कर देता है धन कमाने में, कमा लेने पर धन को बढ़ाने पर, धन के रक्षा करने में, धन के खर्च में, धन के नाश में, और धन के उपयोग में, सर्वत्र परिश्रम, भय, चिंता और चित्त के भ्रम का ही भोग करना पड़ता है चोरी, हिंसा, असत्य, दम्भ, काम क्रोंध, गर्व, अहंकार भेद बुद्धि भेद, अविश्वास स्पर्धा, लंपटता, जुआ और शराब-ये पंद्रह अनर्थ मनुष्यो में धन के कारण ही उत्पन्न होते रहते है अतएवं कल्याण चाहने वाले पुरूष को चाहिये कि वह स्वार्थ और परमार्थ के विरोधी अर्थ नाम के इस अनर्थ को दूर से ही छोड़ दे।
(धर्म से)

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