Monday, August 9, 2010

जनमंच राजनैतिक पार्टी का मंच न बने





कमलनाथ की सेवाएं कहां ली जायें इसका फैसला श्रीमति सोनिया गांधी एवं डॉ.मनमोहन सिंह करेंगें जनमंच नही-हरवंश सिंह
सिवनी। म.प्र.विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि विभिन्न समाचार पत्रों में आज प्रकाशित समाचार पढा,जिसमें भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को विभाग से हटाने एवं जयराम रमेश केन्द्रीय मंत्री वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को आदेश देने की बात कही गई है। समाचार पढने से ऐसा लगता है कि फोरलेन के लिये बना सर्वदलीय जनमंच जिसे पूर्व में सिवनी जिले की सभी राजनैतिक पार्टियों और जिले की जनता एवं जिले के सभी जनप्रतिनिधियों का सहयोग मिला। इसी का परिणाम था कि 21 अगस्त 2009 को फोरलेन बनाने के नाम पर संपूर्ण जिला बंद रहा। फोरलेन पूर्व प्रस्तावित एवं स्वीकृत सिवनी से होकर ही बने इस मांग के लिये सभी एकमत है और इसके लिये समय-समय पर सभी की तरफ से प्रयास किये गये। मैने भी प्रांरभ से ही भरपूर प्रयास किये है। तथा दो बार कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल के साथ इस मांग को लेकर दिल्ली गया हॅू । संभवत: आज भी कांग्रेस पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल फोरलेन की मांग को लेकर दिल्ली गया है।
जनमंच में अन्य दलों के साथ-साथ कांग्र्रेस पार्टी के भी 3-4 सदस्य है संपूर्ण जनमंच की ओर से जनमंच के प्रवक्ता द्वारा आज जो प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित कराई गई है। वह हास्याप्रद है और फोरलेन निर्माण के आंदोलन और भावनाओं को धक्का देने वाली है। जहां एक कमलनाथ की बात है हम जब भी व्यक्तिगत या सामुहिक रूप से मिले है। उन्होनें सदैव इस फोरलेन के निर्माण कराने की बात कही है और प्रयास किये है। छिंदवाडा,दिल्ली एवं नागपुर में उन्होनें समय-समय पर स्पष्ट जोरदारी से यह बात कही है। कि उनका इरादा सिवनी को नुकसान पहुंचाने का नही है और उक्त फोरलेन सिवनी से ही बनेगी। उन्होनें अनेकों बार कहा है कि जहां तक नरसिंहपुर-छिंदवाडा-नागपुर फोरलेन की बात है वह सिवनी से होकर गुजरने वाले फोरलेन की कास्ट पर नही बनाई जा रही है उसके लिये अलग से धन और बजट की व्यवस्था की है। अभी हाल ही में खवासा से नागपुर तक के टेंडर हुये है और निर्माण कार्य भी शीघ्र प्रांरभ होगा। खवासा-नगझर-लखनादौन-नरसिंहपुर तक 75 प्रतिशत कार्य पूर्ण किया जा चुका है। पेंच पार्क मोहगांव से कुरई एवं छपारा से बंजारी क्रमश 9 एवं 10 किलोमीटर में जो रिजर्व वन क्षेत्र आता हैउसमें से एक की स्वीकृति वन मंत्रालय तथा मोहगांव -रूखड 9 किलोमीटर का प्रकरण माननीय सुप्रीम कोर्ट की उच्चाधिकार समिति के समक्ष विचाराधीन है जिसके लिये सभी तरफ से जो प्रयास होना चाहिए वो हो रहे है।
इसके साथ-साथ सबसे आवश्यक बात यह है कि तत्कालीन जिलाध्यक्ष पी.नरहरि द्वारा मध्यप्रदेश राज्य सरकार के निर्देश पर जो निर्माण कार्य पर रोक लगाइ गई है अगर वह तत्काल हटा ली जाती है तो फोरलेन निर्माण की रूकावटें 90 प्रतिशत खुद व खुद खत्म हो जायेगी। बाकी 9 किलोमीटर पेंच पार्क से लगा रिजर्व वन क्षेत्र का प्रकरण बचेगा वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय की उच्चाधिकार समिति के निर्णय तक लंबित रहता है और अगर 9 किलोमीटर सडक वैसी की वैसी रहती है तो विशेष कोई फर्क नही पडेगा।
केन्दीय मंत्रियों के पुतले जलाने उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने,विभाग बदलने जैसी बातें करने वाले लोग या मंच न तो सिवनी जिले के हित की बात कर रहे है और न ही फोरलेन निर्माण की । जनमंच में शामिल कांग्रेस के साथियों से भी मेरा आग्रह है कि जिस मंच मे ंफोरलेन निर्माण की बात कम और हमारे नेताओं को अपमानित करने की बात ज्यादा होने लगी है ऐसे मंच में उन्हें रहना चाहिये या नहीं इस पर भी उन्हें अपने विवेक का उपयोग करना चाहिये।

दुधारू पशुओ की कमी



सिवनी । विगत कुछ दिनों से जिस तरह से लगातार दुधारू पशुओं की उपयुक्त गुणवत्ताओँ में हो रही कमी एवं पशुपालन महंगा होने के कारण पशु पालकों का पशुओं से होता मोह भंग चिंतनीय ही नहीं बल्कि सोचनीय है, जिसके कारण निरंतर दूध में कमी आने के साथ ही साथ दूध की गुणवत्ता में भी प्रश्न चिन्ह लग गया है एवं इस सबका असर इतना दुर्भाग्य पूर्ण है कि आने वाले दिनों में हमारी आने वाली पीढ़ी दूध का पीना तो छोडिय़े, दूध का स्वाद भी नहीं पहचान पायेगी, जिससे शाराीरिक दुर्बलता तो बढ़ेगी, साथ ही साथ बच्चेंा का मानसिक विकास भी रूक जायेगा, इसके लिए समाज के साथ शासन को भी इस ओर जरूरी कदम उठाने आवश्यक है, जिससे इस तरह से बढ़ती हुई विसंगति एवं बिगड़ता प्राकृतिक संतुलन देश के लिए खतरनाक है।
सरकारी आंकड़ों में पशु धन
चौकिए मत 100 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में अब लगभग 16 करोड़ पशु बच्चे है, मरे पर सौ दूररे वाली कहावत इस पर भी पशु कल्लगाहों की संख्या बजाये घटने के बढ़ रही है। अगर आज सिन्थोटिक दूध बंद हो जाये तो दूध और सोना एक भाव बिकेगा। केन्द्र सरकार के डिपार्टमेंट आफ एनीमल हसबेंडरी के आंकड़ों पर अगर यकीन करा जाये तो 1951 में 40 करोड़ जन संख्यक पर 15 करोड़ 53 लाख, 1992 में 93 करोड़ पर 20 करोड़ 45 लाख 1977 में 19 करोड़ 47 लाख, 2003 में 18 करोड़ 51 लाख 80 हजार, 2008-09 में 16 करोड़ बचे है, जबकि 1951 में प्रति 3 लोगों पर 1 पशु था, अब 2006 में 7 लोगों पर 1 पशु रह गया है। इसके पीछे देखा जाये तो मुख्य कारण है आये दिन हजारों पशुओं की तस्करी दूसरा हर साल बड़ रहे पशु वध्रगह जरा सोचिये।
मूक जानकारों की माने तो पशु वधु ग्रह में अपंग या मरणासन पशुओं का कटान चिकित्सा अधिकारी की अनुमति से हो सकता है, जो नहीं होता ऐसा करने वाले कुछ पैसा देकर यह प्रमाण पत्र हासिल कर लेते है। कई जगह तो यह भी नहीं, डॉ. कपडिया के अनुसार पशु को स्वाभाविक मृत्यु होने पर काटा जाना चाहिये। बात सिर्फ दूध की नहंी मानव जीवन की है।
आज गोबर के अभाव में अंधाधुंध यूरिया का प्रयोग हो रहा है। जो जेव के साथ-साथ पर्यावरण व खेती के लिए अच्छा नहीं है और यह किसान को भारी भी पड़ता है। कृषि पर हो सब निर्भर है। नतीजन खाद्य पदार्थो की कीमतें आज आसमान छू रही हैं। अगर अब भी सरकारें या हम नहीं चेते तो मावा, पनीर, लस्सी, आइसक्रीम, चाय, काफी या मिठाइयां बीते दौर की बात बन जायेगी और हमारी जिंदगी बदरंग जरा सोचे कई लोगों से चर्चा करने पर उनका कहना था, सरकार पशु पालन ाको बढ़ावा दें साथ ही इस पर सबसिडी भी दी जाये, इसका प्रचार-प्रसार हो नहीं तो वह दिन दूर नहंी जब बच्चे दूध को तरस जाएंगे।
पैकेट वाले दूध पीते है बच्चे -
ग्रामीण क्षेत्रों में तो बच्चो को गाय नही तो भैंस का दूध मिल ही जाता है लेकिन शहरों में पैकेट बंद दूध ही बच्चों को पीने को मिलता है । जो सिंथेटिक दूध होता है । यह दूध गाय या भैंस का न होकर केमिकल युक्त होता है जो धडल्ले से बेचा जा रहा है । पहले के जमाने में कहा जाता था कि गांव में तो दूध की नादियां बहा करती थी लेकिन अब बच्चों को पीने के लिए स्वादिष्ट व सही दूध तक नही मिल पा रहा है । दूध की इस बढ़ती मांग को पूरी करने हेतु सिंथेटिक दूध तैयार किया जाने लगा जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । इस दूध के सेवन से बच्चे शारीरिक व मानसिक रूप से जहां कमजोर बन रहे है । वहीं वे अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रासित भी हो रहे है ।
आये दिन होता है पंजीबद्ध मामला गौकशी का -

शास्त्रों मे वर्णित है कि गाय की हत्या करना या उसे पीड़ा पहुंचाना जन्म दायिनी माता की हत्या करने के समान है । इसके बावजूद कत्लखानों में प्रतिदिन सैंकड़ो गायों की हत्या सिर्फ मॉस प्राप्त करने के लिए की जा रही है। कत्लखानों में बढ़ रही गायों की मांग के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों से इस व्यापार में लिप्त लोगों द्वारा गौवंश की खरीद फरोख्त दिन प्रतिदिन दिन दूनी रात चौगुनी की जा रही है । इन लोगों द्वारा गौ पालकों को गाय की अच्छी कीमत देकर गाय को सीधे कत्लखाना पहुंचाया जा रहा है । वहीं स्थानीय स्तर पर चोरी छिपे गाय का वधन कर मॉस विक्रय किया जाता है । एक और सरकार गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाते हुए इस तरह के कृत्य करने वालों को अपराधी करार देती है वहीं दूसरी और कत्लखानों को संरक्षण प्रदान करती है । इससे सरकार की नियत स्पष्ट होती है । कि शासन गौवंश का अपेक्षित संरक्षण नही करना चाहता वहीं कत्ल खाने खोलकर मॉस को विदेशों में निर्यात कर धन कमाना चाहता है इस तरह शासन की दोहरी नीति से गौवंश का अस्तित्व संकट में पड़ गया है।
नही बनी योजनाएं -
कृषि प्रधान देश में तभी आर्थिक उन्नति आ सकती है जब प्रत्येक घरों में गौपालन की अनिवार्यता हो । वही गाय पालन में रूचि रखने वालों को आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए । एवं पालन करने वाले व्यक्ति यों के आर्थिक स्तर में सुधार भी आ सकता है तथा व्यवसाय के नाम पर ऋण देने की भी योजनाएं चलाई जा रही है लेकिन वह अभी भी प्रभावी एवं सरल नही है ।