Wednesday, July 14, 2010

बडी धूम धाम से निकली भगवान जगन्नाथ शोभायात्रा











(पिंकी उपाध्याय)
सिवनी। प्रदेश के दूसरे और नगर को पहले जगन्नाथ मंदिर की अमूल्य धरोहर का सौभाग्य सिवनी शहर को प्रदत्त है।प्रतिवर्ष आषाढ़ माह की द्वितीया को स्वामी जगन्नाथ की शोभायात्रा यहां पुरातन काल से यहां आयोजित होती आई है अपने आप में अदभुत और इच्छा, मन, फलदायिनी इस शोभायात्रा में जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ की गंूज नगर की हर साल हर गली में यहां गुंजित होती है समाज के हर छोटे वर्ग समूह के लोग और धर्मप्रेमीजन जगन्नाथ स्वामी के इस समारोह में शरीक होते हैं।
बिना सहयोग के बना मंदिर
नगर के सुभाष वार्ड स्थित जगन्नाथ स्वामी जी के मंदिर का निर्माण स्व. सेठ भोपतराव जी पवार द्वारा सन १९१४ में (विक्रम संवत १९७१) में बिना किसी के सहयोग से कराया गया था नगर में प्रचलित किवदंती के मुताबिक जगन्नाथ मंदिर के निर्माता भोपतराव को स्वप्र में जगन्नाथ जी ने दर्शन देकर इस प्रतिमा स्थापना का उनसे संकल्प लिया था भगवान जगन्नाथ के साक्षात दर्शन से प्रफुल्लित भोपतराव ने उन दिनों बिना किसी से सहयोग लिये इस मंदिर का निर्माण कराया मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित जगन्नाथ स्वामी की मनोहारी प्रतिमा आज भी नगर और समीपवर्ती लोगों के लिये पूज्यनीय बनी हुई हैं मंदिर के कलश, साज सज्जा और उसके कंगूरे आज भी भोपतराव के भगवत प्रेम को बयां करते हैं।
जगन्नाथ पुरी से आई मूर्तियां
मंदिर के निर्माण के बाद स्थापना के लिये स्वामी जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं उन दिनों जगन्नाथ् पुरी से ही लाई गई थी जगन्नाथ मंदिर की प्रतिमाओं की वास्तुकला को इन प्रतिमाओं में हूबहू निखारा गया है नगर के इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि सवा माह की लगातार विशेष पूजन अर्चना के बाद भगवान की इन प्रतिमाओं की यहां प्राण प्रतिष्ठा संभव हो पाई थी उनकी इसी परम्परा का निर्वाह करते हुये इस परिवार की पांचवी पीढ़ी के सुनीलराव पवार के आहृान पर आज भी लोकप्रिय बनी हुई हैं हर वर्ष इसका बड़ा खर्च भी उनके परिजन स्वयं उठाते हैं।
९७ वर्ष में पहँुची रथयात्रा
सिवनी में जज के रूप में सेवारत भोपतराव द्वारा शुरू की जगन्नाथ की रथयात्रा ९७ वर्षाे से अनवरत चली आ रही हैं भोपतराव के बाद उनके पुत्र सेठ रामराव, गोपालराव और जगन्नाथराव के बाद भगवान जगन्नाथ की सेवा का भार सुनीलराव पवार पर हैं और वे इसका निर्वहन भी पूरी क्षमता से कर रहे हैं सुनीलराव अपने परदादा के बारे में एक कहावत यह भी चरितार्थ है कि १९५४ में उनके परदादा भोपतराव की मृत्यु के वक्त मंदिर के समीप लगा नीम का दरकश वृक्ष अपने आप टूट गया और मंदिर में लगे चारों ताले अपने आप खुल गये थे।
जगत पसारे हाथ
जगन्नाथ स्वामी के प्रसाद के रूप में भक्तों को दाल भात बहुत प्रिय है यही वजह है कि आज भी महाप्रसाद के रूप में केवल भात ही बांटा जाता है प्रसाद को पाने के लिये हजारो लोगों की जो भीड़ उमड़ती है वह हाथ पसारे जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ की कहावत को गुंजित करते हैं।
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रतिवर्ष निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा नगर के प्राचीन व एकमात्र जगदीश मंदिर से मंगलवार को भव्य रूप से निकाली गई भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और भाई बलभद्र की इस शोभायात्रा को भव्य रूप देने के लिये व्यापक तैयारियां की गई थी इस रथयात्रा को नगर के परम्परागत प्रमुख मार्गाे से भ्रमण कराते हुये बैनगंगा के पावन तट लखनवाड़ा ले जाया गया इसके पूर्व यह यात्रा चित्रगुप्त, महावीर टॉकीज, सुनारी मोहल्ला, शुक्रवारी राम मंदिर, काली चौक से बरघाट रोड होते हुये विंध्यवासिनी मंदिर से गणेश चौक और वहां से जैन मंदिर के सामने से पुन: शुक्रवारी और यहां से नेहरू रोड पहँुची दुर्गा चौक, मठ मंदिर, छिंदवाड़ा चौक होते हुये शोभायात्रा बैनगंगा तट लखनवाड़ा पहँुची यहां भगवान की श्रद्धा भाव से पूजार्चना की गई।
हुई पूजा अर्चना
शोभायात्रा निकलने के पूर्व जगदीश मंदिर में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने रीति-रिवाज के अनुसार पूजन पाठ किया वही शाम तक यहां भजन कीर्तन और आरती की गई रैली में श्रद्धालुओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया वहीं जगह-जगह इस भव्य शोभायात्रा का नागरिकों ने स्वागत व पूजनपाठ कर प्रसाद वितरण किया।