Tuesday, August 10, 2010

सिवनी में बदस्तूर जारी है बंधुआ मजदूर प्रथा


(मामला निर्माणाधीन हाकी ग्राउंड का)
पिंकी उपाध्याय
सिवनी। यह वाकया है नगर के बीचोबीच स्थित थोक सब्जी मंडी के पिछले हिस्से की जहां पर मध्यप्रदेश में स्वीकृत तीन हाकी मैदानों में से एक का सन 2008 से निर्माण कार्य चल रहा है जहां साल भर पूर्व करोड़ो रूपये कीमत की एस्ट्रोटर्फ आकर रखी हुई है समाचार पत्रों के प्रयास से ही उसे पानी से बचाव के लिए बरसाती से ढक दिया गया है। वर्तमान में इस ग्राउंड में सीढ़ीनुमा बैठक व्यवस्था का निर्माण कार्य चल रहा है। वहां पर कार्यरत महिला श्रमिक से बात करने पर यह जानकारी मिली कि उन्हें 80 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है इस संबंध में ठेकेदार से बात करने पर उन्होनें बताया कि ये मेरे परमानेंट मजदूर है और मेरे द्वारा निर्धारित मजदूरी से अधिक ही भुगतान किया जाता है तब पुन: एक महिला श्रमिक से पूछने पर उसने भी यही बताया कि उसे भी 80रूपये प्रतिदिन की दर से भुगतान प्राप्त होता है।
यह एक घटना है जो मध्यप्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों की हकीकत से हमें रूबरू कराता है. अधिकांश जिलों में बंधुआ मजदूरों के बारे में हुए अध्ययन में साफ कहा गया है कि इन इलाकों में बंधुआ मजूरी बदस्तूर जारी है. इन इलाकों में दिन भर काम कराने के बाद भी मजदूरी के नाम पर 80रूपये देकर टरका दिया जाता है। जिसमे यह बात गौर करने की है कि कानूनों के दबाव व नियमों को ध्यान में रखते हुए अधिकांश क्षेत्रों में बंधुआ मजदूरों का स्वरूप बदल गया है. उल्लेखनीय है कि 1981 में मध्यप्रदेश के कमिश्नर लोहानी ने आब्रजन कानून बनाया ताकि यहां से बंधुआ बनकर जाने वाले मजदूरों को रोका जा सके जबकि उनके कारणों की खोज कर निदान करने का प्रयास नहीं किया गया।
बंधुआ मजदूरों की स्थिति
बंधक बनकर जाने वाले मजदूरों के दवा पानी राशन आदि की सुविधा कई नियोक्ता करते भी हैं तो अंत मे उनकी मजदूरी जो प्राय: अनुबंधित मजदूरी से कम होती है उसमें से काट लिया जाता है. मजदूर अनपढ़ होते हैं अत: उन्हें सही-सही पता नहीं चल पाता कि उन्हें कितना मिलना चाहिये कितना नहीं. नियोक्ता लौटते वक्त जितना देता है उतना ही लेने के लिये वे मजबूर रहते हैं. कई बार वे मुफ्त में भी काम करते हैं ।
कैसे बनते है बंधुआ मजदूर
बंधुआ मजदूर अक्सर सपरिवार ही पलायन करते हैं. गांव में केवल बूढ़े बचते हैं जो फसल से उपजे धान से अपनी जीविका चलाते हैं. ठेकेदारों के मातहत काम करने वाले मजदूर एडवांस लेकर उनके बंधुआ बनते हैं जबकि सिवनी नगर में आज भी ठेकेदारी प्रथा लागू है जो कि एडवांस देकर बधुआ बने मजदूरों पर आधारित है. आने वाले बंधुआ मजदूर जंगलों के निवासी भी हैं जो पहले अपनी आजीविका जंगलों में खोज लिया करते थे पर कम होते व कटते जंगलों से इनके आजीविका की समस्या बढ़ रही है और ये पलायित होने व बंधुआ बनने को मजबूर हो रहे हैं.इन काम करने वाले मजदूरों को ठेकेदार 1500 से 2000 रूपये मासिक देता है और 12 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ता है.प्राय: ये अकुशल श्रमिक के रूप में देखे जाते हैं यही हालत अन्य कई क्षेत्र में काम करने वाले ठेकेदारों द्वारा बंधक मजदूरों के साथ भी है जो सड़क निर्माण से लेकर चावल मिल में काम करते हैं. अत: ठेकेदारी की बढ़ती प्रथा ने बंधुआ मजदूरों के स्वरूप को बदल दिया है. जिससे बंधुआ का जो संवैधानिक विश्लेषण है उसके तहत इन्हें पहचानना मुश्किल है.।
ये है नियम
सत्ता हस्तांतरण के 27 वर्ष बाद 19 फरवरी 1976 को बंधुआ मजदूर के शारीरिक व आर्थिक शोषण से मुक्ति हेतु Óबंधित श्रम प्रथा उन्मूलन नियम 1976Ó बनाया गया. इसके पश्चात अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति 1989 अधिनियम भी बनाया गया, जिसका सम्बंध बंधुआ मजदूरों से जुड़ा हुआ है. ऐसा इसलिए किया गया क्योकि देश में चल रही बंधुआ प्रथा में एक अंकडे के मुताबिक 98 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोग प्रताडि़त होते हैं.
कानूनी तौर पर बंधुआ मजदूरों को लेकर कुछ अन्य नियम भी बनाये गये जैसे बंधुआ मजदूर व प्रवासी बंधुआ मजदूर जो किसी अन्य राज्य में जाकर बंधुआ के रूप में कार्य करते हैं उनके लिये जिले में सतर्कता समिति के गठन का भी सुझाव दिया गया और समिति निर्माण का कार्य जिला अधिकारी को दिया गया. साथ में बंधुआ मजदूरी कराने वाले व्यक्ति नियोक्ता ठेकेदार आदि को दंडित करने का नियम भी बनाया गया जो 3 वर्ष तक कारावास व 2000 रूपये जुर्माने के रूप में थी. सरकार द्वारा बंधुआ मजदूरों के सम्बंध में राहत राशि की व्यवस्था भी की गयी जो 25,000 रूपये उनके पुनर्वास हेतु व पानी भूमि आदि के रूप में की गयी.जहां इसकी शिकायत की गई उनमे से कुछ को यह सुविधा प्रदान कराई गयी पर सिवनी के बंधुआ मजदूरों को यह सुविधा अभी तक नही मिली है।

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