Sunday, July 11, 2010

शिक्षण संस्थान सुविधा विहीन (पिंकी उपाध्याय)



नही मिल रही बच्चों को बेहतर शिक्षा व संस्कार
उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली द्वारा दिये गये निर्देशों का नही हो पा रहा पालन


सिवनी । निजी स्कूल संचालक पालकों को कितनी ही सुविधायें देने का वादा सत्र प्रारंभ होने से पूर्व देते हों लेकिन स्थिति इसके विपरीत होती है। शिक्षा विभाग के स्पष्ट एवं कड़े निर्देशों के बावजूद भी निजी शिक्षण संस्थान उन शर्तों को पूरा नहीं करते। ९० प्रतिशत निजी व प्राइमरी स्कूल नियमों को लगभग ताँक में रखते हुये मान्यता हासिल कर लेते हैँ वहीं दूसरी ओर शिक्षा विभाग का भारी भरकम अमला भी इस मामले में चुप्पी साधे रखता है लगभग 50 प्रतिशत स्कूल भाड़े का मकान लेकर लगाये जाते हैं इन मकानों में ना ही कोई पर्याप्त खेल मैदान होता है और ना ही आवागमन की सुविधा। पढने वाले बच्चे खेल कूद में पूरी तरह पिछड़ जाते हैं दाखिले के समय अभिभावकों को तरह तरह के प्रलोभन देकर फँसा लिया जाता है लाइब्रेरी खेल कूद मैदान, खुला वातावरण, प्रयोग शाला, शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था का पूर्ण रूप से अभाव रहता है। अनेक स्कूलों में अध्यापन का समय भी निर्धारित नहीं है सप्ताह के कुछ दिन प्रात: स्कूल लगते हैं तो कभी दोपहर में जिस वजह से कई बच्चे नियमित रूप से अध्यापन कार्य नहीं कर पाते कई स्कूल सप्ताह के कुछ दिन ही खुलते हैं अभिभावकों के निवेदन के पश्चात् भी इन स्कूलों में कोई सुनवाई नहीं होती उल्टा उन्हें यह कह दिया जाता है कि अपने बच्चे का दाखिला किसी फकीर सरकारी स्कूलों में करवा दो इन सबके बावजूद भी स्कूल संचालक अभिभावकों से फीस के नाम पर मोटी रकम वसूलते हैं। इन सब मामलों में बनाई गई जाँच समिति भी ले देकर शर्तें पूरी ना कर पाने वाली शिक्षण संस्थाओं पर कोई अंकुश नहीं लगा पाती हैं।
नगर में पिछले कुछ वर्षाे में प्रायवेट स्कूलों की बाढ़ सी आ गई हैं। शहर के लगभग हर इलाके में निजी स्कूल संचालित हैं। वहीं बेहतर शिक्षा पाने के ललक व आगे दिखने की होड़ में अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या भी बढ़ी हैंन केजी वन से लेकर हाईस्कूल तक की कक्षाओं वाले स्कूलों की संख्या इनमें अधिक हैं किंतु नगर में अनेक प्रायवेट स्कूल संचालित हैं, जो शासन द्वारा निर्धारित नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं।
इन स्कूलों में छात्रों के खेलने के लिए ग्राउंड भी नहीं हैं और फीस के लालच में छोटे-छोटे कमरों में क्षमता से अधिक विद्यार्थी बिठाये जाते हैं स्कूल संचालकों द्वारा छात्र-छात्राओं के अभिभावकों से मोटी फीस वसूली जाती हैं वहीं सत्र प्रारंभ होने पर उन्हें निर्देशित किया जाता हैं कि वे उनकी बताई दुकानों से ही कापी किताबें व यूनिफार्म खरीदें। इन दुकनों से स्कूल संचालक अपना कमीशन भी वसूलते हैं इन स्कूल संचालकों द्वारा कम वेतन पर शिक्षक-शिक्षिकाएं रखते हैं जो स्कूल में विद्यार्थियों को सही तरीके से पढ़ाई नहीं करवाते और अपने पास ट्यूशन पढऩे के लिए मजबूर करते हैं इसीलिये छोटी-छोटी कक्षाओं में अध्ययनरत छात्र-छात्राएं को भी ट्यूशन जाना पड़ता हैं।
इससे अभिभावकों पर बच्चों की पढ़ाई का अतिरिक्त भार पड़ता हैं। स्कूलों में मैदान का अभाव होने से यहां खेलकूद इत्यादि भी नहीं होते इससे छात्र-छात्राएं खेलकूद की गतिविधियों से वंचित रह जाते हैं इन स्कूलों में कोई रचनात्मक कार्य व प्रतियोगिता भी आयोजित नहीं की जाती, जिससे छात्र-छात्राओं में प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास नहीं होता। छात्र-छात्राएं जैसे तैसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
नही मिल रही बच्चों को बेहतर शिक्षा व संस्कार
उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली द्वारा दिये गये निर्देशों का नही हो पा रहा पालन
सिवनी । निजी स्कूल संचालक पालकों को कितनी ही सुविधायें देने का वादा सत्र प्रारंभ होने से पूर्व देते हों लेकिन स्थिति इसके विपरीत होती है। शिक्षा विभाग के स्पष्ट एवं कड़े निर्देशों के बावजूद भी निजी शिक्षण संस्थान उन शर्तों को पूरा नहीं करते। ९० प्रतिशत निजी व प्राइमरी स्कूल नियमों को लगभग ताँक में रखते हुये मान्यता हासिल कर लेते हैँ वहीं दूसरी ओर शिक्षा विभाग का भारी भरकम अमला भी इस मामले में चुप्पी साधे रखता है लगभग 50 प्रतिशत स्कूल भाड़े का मकान लेकर लगाये जाते हैं इन मकानों में ना ही कोई पर्याप्त खेल मैदान होता है और ना ही आवागमन की सुविधा। पढने वाले बच्चे खेल कूद में पूरी तरह पिछड़ जाते हैं दाखिले के समय अभिभावकों को तरह तरह के प्रलोभन देकर फँसा लिया जाता है लाइब्रेरी खेल कूद मैदान, खुला वातावरण, प्रयोग शाला, शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था का पूर्ण रूप से अभाव रहता है। अनेक स्कूलों में अध्यापन का समय भी निर्धारित नहीं है सप्ताह के कुछ दिन प्रात: स्कूल लगते हैं तो कभी दोपहर में जिस वजह से कई बच्चे नियमित रूप से अध्यापन कार्य नहीं कर पाते कई स्कूल सप्ताह के कुछ दिन ही खुलते हैं अभिभावकों के निवेदन के पश्चात् भी इन स्कूलों में कोई सुनवाई नहीं होती उल्टा उन्हें यह कह दिया जाता है कि अपने बच्चे का दाखिला किसी फकीर सरकारी स्कूलों में करवा दो इन सबके बावजूद भी स्कूल संचालक अभिभावकों से फीस के नाम पर मोटी रकम वसूलते हैं। इन सब मामलों में बनाई गई जाँच समिति भी ले देकर शर्तें पूरी ना कर पाने वाली शिक्षण संस्थाओं पर कोई अंकुश नहीं लगा पाती हैं।
नगर में पिछले कुछ वर्षाे में प्रायवेट स्कूलों की बाढ़ सी आ गई हैं। शहर के लगभग हर इलाके में निजी स्कूल संचालित हैं। वहीं बेहतर शिक्षा पाने के ललक व आगे दिखने की होड़ में अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या भी बढ़ी हैंन केजी वन से लेकर हाईस्कूल तक की कक्षाओं वाले स्कूलों की संख्या इनमें अधिक हैं किंतु नगर में अनेक प्रायवेट स्कूल संचालित हैं, जो शासन द्वारा निर्धारित नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं।
इन स्कूलों में छात्रों के खेलने के लिए ग्राउंड भी नहीं हैं और फीस के लालच में छोटे-छोटे कमरों में क्षमता से अधिक विद्यार्थी बिठाये जाते हैं स्कूल संचालकों द्वारा छात्र-छात्राओं के अभिभावकों से मोटी फीस वसूली जाती हैं वहीं सत्र प्रारंभ होने पर उन्हें निर्देशित किया जाता हैं कि वे उनकी बताई दुकानों से ही कापी किताबें व यूनिफार्म खरीदें। इन दुकनों से स्कूल संचालक अपना कमीशन भी वसूलते हैं इन स्कूल संचालकों द्वारा कम वेतन पर शिक्षक-शिक्षिकाएं रखते हैं जो स्कूल में विद्यार्थियों को सही तरीके से पढ़ाई नहीं करवाते और अपने पास ट्यूशन पढऩे के लिए मजबूर करते हैं इसीलिये छोटी-छोटी कक्षाओं में अध्ययनरत छात्र-छात्राएं को भी ट्यूशन जाना पड़ता हैं।
इससे अभिभावकों पर बच्चों की पढ़ाई का अतिरिक्त भार पड़ता हैं। स्कूलों में मैदान का अभाव होने से यहां खेलकूद इत्यादि भी नहीं होते इससे छात्र-छात्राएं खेलकूद की गतिविधियों से वंचित रह जाते हैं इन स्कूलों में कोई रचनात्मक कार्य व प्रतियोगिता भी आयोजित नहीं की जाती, जिससे छात्र-छात्राओं में प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास नहीं होता। छात्र-छात्राएं जैसे तैसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

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